मकसद साबित न होने भर से केस खारिज नहीं...सुप्रीम कोर्ट ने हत्या मामले में आरोपी की सजा बरकरार रखी

जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की बेंच ने उस अपील की सुनवाई की जिसमें आरोपी ने मृतक की गोली मारकर हत्या की थी। अभियोजन पक्ष ने अंतिम बार साथ देखा गया' सिद्धांत, धारा 27 साक्ष्य अधिनियम के तहत खुलासे पर हुई बरामदगी, और अन्य परिस्थितिजन्य साक्ष्यों के आधार पर दोष सिद्ध किया।

मकसद साबित न होने भर से केस खारिज नहीं...सुप्रीम कोर्ट ने हत्या मामले में आरोपी की सजा बरकरार रखी

सुप्रीम कोर्ट ने एक व्यक्ति की हत्या के आरोप में हुई सजा को बरकरार रखते हुए यह स्पष्ट किया कि अभियोजन पक्ष का मामला परिस्थितिजन्य साक्ष्यों पर आधारित था। अदालत ने कहा कि सिर्फ इस आधार पर कि उद्देश्य स्थापित नहीं हुआ, अभियोजन के पूरे मामले को खारिज नहीं किया जा सकता।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि जब मामला परिस्थितिजन्य साक्ष्यों पर आधारित हो, तब कानून यह अपेक्षा करता है कि जो भी तथ्य सिद्ध किया जा रहा है, वह किसी भी "तार्किक संदेह" को समाप्त करता हो। मूल रूप से, अभियोजन पक्ष को तार्किक संदेह को दूर करते हुए एक ऐसी घटनाओं की कड़ी पेश करनी होती है और कड़ी टूटनी नहीं चाहिए और तब आरोपी दोषी साबित हो। कानून कहता है कि उस तथ्य को तार्किक संदेह से मुक्त होना चाहिए। 'तार्किक संदेह' का अर्थ कोई तुच्छ, काल्पनिक या कपोल-कल्पित संदेह नहीं होता, बल्कि ऐसा संदेह होता है जो सबूतों के आधार पर सामान्य बुद्धि से उत्पन्न होता है।

अदालत ने कहा कि हर वह परिस्थिति जिससे किसी निष्कर्ष को निकाला जाना है, उसे कानून के अनुसार सिद्ध किया जाना चाहिए। इसमें कोई अनुमान या अटकलबाज़ी नहीं होनी चाहिए, और सभी सिद्ध की गई परिस्थितियां मिलकर एक पूर्ण कड़ी बनानी चाहिए, जो स्पष्ट रूप से आरोपी के अपराध की ओर संकेत करे। हालांकि कोई एक परिस्थिति अकेले अपराध सिद्ध न कर पाए, परंतु सभी परिस्थितियों का सम्मिलित प्रभाव आरोपी को दोषी सिद्ध करने के लिए पर्याप्त हो सकता है। इन परिस्थितियों को केवल एक ही संभाव्यता के अनुरूप होना चाहिए। आरोपी के दोषी होने की  और किसी भी वैकल्पिक संभाव्यता को नकारना चाहिए। मकसद साबित होने से केस और ज्यादा पुख्ता हो जाता है लेकिन उसकी अनुपस्थिति में केस खत्म नहीं हो जाता।

जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की बेंच ने उस अपील की सुनवाई की जिसमें आरोपी ने मृतक की गोली मारकर हत्या की थी। अभियोजन पक्ष ने अंतिम बार साथ देखा गया' सिद्धांत, धारा 27 साक्ष्य अधिनियम के तहत खुलासे पर हुई बरामदगी, और अन्य परिस्थितिजन्य साक्ष्यों के आधार पर दोष सिद्ध किया।अपीलकर्ता ने यह तर्क देते हुए सजा को चुनौती दी कि अभियोजन पक्ष हत्या के पीछे के उद्देश्य को साबित नहीं कर सका, और उद्देश्य की अनुपस्थिति में दोषसिद्धि नहीं होनी चाहिए। अभियोजन पक्ष ने कहा कि मृतक द्वारा 4,000 रुपये का कर्ज न लौटाना और पैसे मांगने पर अपीलकर्ता को अपमानित करना ही हत्या का कारण था।

अदालत ने अभियोजन पक्ष के इस कथन को स्वीकार किया कि आरोपी के मन में मृतक के प्रति रोष था। हालांकि, अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि अगर उनके बीच कोई वित्तीय लेनदेन नहीं भी था, तब भी यह अभियोजन पक्ष के मामले को कमजोर नहीं करता, क्योंकि मामला परिस्थितिजन्य साक्ष्यों पर आधारित है, जिसमें उद्देश्य का सख्त प्रमाण आवश्यक नहीं होता। अदालत ने कहा कि किसी व्यक्ति का उद्देश्य साबित करना कठिन होता है, क्योंकि वह व्यक्ति के मन के भीतर छिपा रहता है और अगर वह स्वयं कोई खुली घोषणा न करे, तो उसके व्यवहार और क्रियाकलापों से ही उद्देश्य का अनुमान लगाया जा सकता है।

क्या था यह मामला

मामला कर्नाटक के धारवाड़ का है। अभियोजन पक्ष के मुताबिक अपीलकर्ता चेतन और मृतक विक्रम सिंडे आपस में मित्र थे। मृतक ने उधार ली हुई राशि अपीलकर्ता को वापस नहीं लौटाई थी। 10.07.2006 को लगभग 20:30 बजे, अपीलकर्ता ने अपने दादा की 12 बोर डी.बी.बी.एल (डबल बैरल ब्रेक लोडेड) बंदूक और कारतूस यह कहकर लिए कि वह शिकार पर जा रहा है। फिर वह मृतक को अपने साथ हीरो होंडा मोटरसाइकिल पर बैठाकर शाहपुर गांव के गन्ने के खेत में ले गया। आरोप है कि उसी रात लगभग 22:00 बजे, अपीलकर्ता ने उपरोक्त डी.बी.बी.एल बंदूक से मृतक की गोली मारकर हत्या कर दी। हत्या का मामला बना और धारवाड़की  निचली अदालत और कर्नाटक हाई कोर्ट ने आरोपी को हत्या में दोषी करार दिया। इस फैसले को दोषी ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जिसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया।